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तच्चक्षु॑र्दे॒वहि॑तं पु॒रस्ता॑च्छु॒क्रमुच्च॑रत्। पश्ये॑म श॒रदः॑ श॒तं जीवे॑म श॒रदः॑ श॒तꣳ शृणु॑याम श॒रदः॑ श॒तं प्र ब्र॑वाम श॒रदः॑ श॒तमदी॑नाः स्याम श॒रदः॑ श॒तं भूय॑श्च श॒रदः॑ श॒तात् ॥२४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। चक्षुः॑। दे॒वहि॑त॒मिति॑ दे॒वऽहि॑तम्। पु॒रस्ता॑त्। शु॒क्रम्। उत्। च॒र॒त्। पश्ये॑म। श॒रदः॑। श॒तम्। जीवे॑म। श॒रदः॑। श॒तम्। शृणु॑याम। श॒रदः॑। श॒तम्। प्र। ब्र॒वा॒म॒। श॒रदः॑। श॑तम्। अदी॑नाः। स्या॒म॒। श॒रदः॑। श॒तम्। भूयः॑। च॒। श॒रदः॑। श॒तात् ॥२४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर की प्रार्थना का विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर ! आप जो (देवहितम्) विद्वानों के लिये हितकारी (शुक्रम्) शुद्ध (चक्षुः) नेत्र के तुल्य सबके दिखानेवाले (पुरस्तात्) पूर्वकाल अर्थात् अनादि काल से (उत्, चरत्) उत्कृष्टता के साथ सबके ज्ञाता हैं, (तत्) उस चेतन ब्रह्म आपको (शतम्, शरदः) सौ वर्ष तक (पश्येम) देखें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष तक (जीवेम) प्राणों को धारण करें, जीवें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष पर्य्यन्त (शृणुयाम) शास्त्रों वा मङ्गल वचनों को सुनें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष पर्य्यन्त (प्रब्रवाम) पढ़ावें वा उपदेश करें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष पर्य्यन्त (अदीनाः) दीनतारहित (स्याम) हों (च) और (शतात्, शरदः) सौ वर्ष से (भूयः) अधिक भी देखें, जीवें, सुनें, पढ़ें, उपदेश करें और अदीन रहें ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! आपकी कृपा और आपके विज्ञान से आपकी रचना को देखते हुए आपके साथ युक्त नीरोग और सावधान हुए हम लोग समस्त इन्द्रियों से युक्त सौ वर्ष से भी अधिक जीवें, सत्य शास्त्रों और गुणों को सुनें, वेदादि को पढ़ावें, सत्य का उपदेश करें, कभी किसी वस्तु के विना पराधीन न हों, सदैव स्वतन्त्र हुए निरन्तर आनन्द भोगें और दूसरों को आनन्दित करें ॥२४ ॥ इस अध्याय में परमेश्वर की प्रार्थना, [सद्गुणावाप्ति], सब के सुख का भान, आपस में मित्रता करने की आवश्यकता, दिनचर्या का शोधन, धर्म का लक्षण, अवस्था का बढ़ना और परमेश्वर का जानना कहा है, इससे इस अध्याय के अर्थ की पूर्व अध्याय में कहे अर्थ के साथ संगति है, ऐसा जानना चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां श्रीमत्परमविदुषां श्रीविरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीपरमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां समन्विते यजुर्वेदभाष्ये षट्त्रिंशोऽध्यायः पूर्त्तिमगात् ॥३६॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरप्रार्थनाविषयमाह ॥

अन्वय:

(तत्) चेतनं ब्रह्म (चक्षुः) चक्षुरिव सर्वदर्शकम् (देवहितम्) देवेभ्यो विद्वद्भ्यो हितकारि (पुरस्तात्) पूर्वकालात् (शुक्रम्) शुद्धम् (उत्) (चरत्) चरति सर्वं जानाति (पश्येम) (शरदः) (शतम्) (जीवेम) प्राणान् धारयेम (शरदः) (शतम्) (शृणुयाम) शास्त्राणि मङ्गलवचनानि चेति शेषः (शरदः) शतम् (प्र, ब्रवाम) अध्यापयेमोपदिशेम वा (शरदः) (शतम्) (अदीनाः) दीनतारहिताः (स्याम) भवेम (शरदः) (शतम्) (भूयः) अधिकम् (च) पुनः (शरदः) (शतात्) ॥२४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! भवान् यद्देवहितं शुक्रं चक्षुरिव वर्त्तमानं ब्रह्म पुरस्तादुच्चरत् तत् त्वां शतं शरदः पश्येम, शतं शरदो जीवेम, शतं शरदः शृणुयाम, शतं शरदः प्रब्रवाम, शतं शरदोऽदीनाः स्याम। शताच्छरदो भूयश्च पश्येम, जीवेम, शृणुयाम, प्रब्रवामोऽदीनाः स्याम च ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! भवत्कृपया भवद्विज्ञातेन भवत्सृष्टिं पश्यन्त उपयुञ्जानाऽरोगाः समाहिताः सन्तो वयं सकलेन्द्रियैर्युक्ताः शताद्वर्षेभ्योऽप्यधिकं जीवेम, सत्यशास्त्राणि भवद्गुणांश्च शृणुयाम, वेदादीनध्यापयेम, सत्यमुपदिशेम, कदाचित् केनापि वस्तुना विना पराधीना न भवेम, सदैवमात्मवशाः सन्तः सततमानन्देमाऽन्यांश्चानन्दयेमेति ॥२४ ॥ अत्र परमेश्वरप्रार्थनं सद्गुणप्रापणं सर्वेषां सुखभानं परस्परमित्रत्वावश्यककरणं दिनचर्याशोधनं धर्मलक्षणमायुर्वर्धनं परमेश्वरविज्ञानं चोक्तमत एतदर्थस्य पूर्वाध्यायोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वरा ! तुझ्या कृपेने विज्ञानयुक्त सृष्टिरचनेला पाहून निरोगी इंद्रियांनी सावधान राहून शंभर वर्षांपेक्षा जास्त वागावे. सत्य शास्रे वाचावी. तुझे गुण श्रवण करावे. वेद इत्यादींचा उपदेश करावा. कोणत्याही वस्तूच्या अधीन होऊ नये. सदैव स्वतंत्र राहून आनंद भोगावा व इतरांनाही आनंदी करावे.